7. नवगाँव
एवरेस्ट लॉज, नवगाँव
19 फरवरी’95/रात्रि 8:15
खजुराहो से चलते वक्त मेरा पक्का इरादा था,छतरपुर में ही रात बितानी है; चाहे शाम के चार बजे ही क्यों न वहाँ पहुँच जाऊँ। इसीलिए आज खजुराहो से काफी देर करके मैंने सफर की शुरुआत की थी। वर्ना इस सफर में अब तक हर रोज मैंने सुबह काफी जल्दी सफर की शुरुआत की थी। जिम कॉर्बेट की अमर रचना ‘मैनैइटर्स ऑव कुमायूँ’ और (एक कम प्रसिद्ध रचना) ‘जंगल लोर’ से मैंने यह सीखा था कि जब कभी निजी साधन से या या पैदल सफर करना हो, तो सूर्योदय के आस-पास सफर की शुरुआत करनी चाहिए। खैर।
चूँकि मेरा इरादा छतरपुर में रात रुकने का था, इसलिए खजुराहो से पौने ग्यारह बजे मैं निकला। जिस सड़क पर 17 की शाम मेरी साइकिल आराम से चल रही थी, उसी पर आज साइकिल चलने का नाम नहीं ले रही थी। हवा विपरीत थी, जिसके कारण ढलान पर भी साइकिल आराम से नहीं लुढ़क रही थी। खूब रुकते, पैदल चलते मैं चल रहा था। एक जगह रुककर चाय भी पीया। सड़क को चौड़ा करने का काम बड़े अव्यवस्थित ढंग से चल रहा था। मीलों तक सड़क को बिगाड़ कर रख दिया गया था, और कोई भी वाहन बीच सड़क से दाहिने-बाएं खिसकना नहीं चाहता था।
एक बजे एक जलाशय के किनारे बैठकर मैंने अपना आपात्कालीन भोजन चिड़वा खाया। खाने के बाद झील-जैसे उस जलाशय में मैंने अपने बर्तन, यानि वायु सेना के (फौजी) वाटर बोतल के बड़े-से कप को, धोया। इस वाटर बोतल ने सफर में मेरा काफी साथ दिया, वर्ना पिछ्ले नौ वर्षों से यह बक्से में ही पड़ा था!
इस सफर में मुझे ट्रांजिस्टर की कमी महसूस हुई। साथी की कमी तो खैर, थी ही। मेरे दो दोस्त इस साइकिल यात्रा के लिए तैयार थे, पर उन्हें छुट्टी नहीं मिली थी। किसी नुक्कड़ पर चाय पीते वक्त कभी-कभार किसी बुजुर्ग से बात-चीत हो जाती थी। कभी किसी साइकिल सवार से भी बात-चीत हो जाती थी। बाकी सफर बोरियत से भरा होता था। फिलहाल, यह इलाका भी पठारी था।
पाँच बजे करीब छतरपुर के छत्रसाल चौराहे पर पहुँचा। वहाँ कोई लॉज नहीं था। बस-अड्डे की ओर गया। वहीं मुख्य बाजार भी है। कोई डेढ़ किलोमीटर की दूरी थी, और पूरी सड़क ढालू नजर आयी। अब समझ में आया कि 17 की शाम इस सड़क पर जब होटल नजर नहीं आ रहा था, तो मुझे गुस्सा क्यों आ रहा था। चढ़ाव ने मेरी हालत खराब कर रखी होगी!
खैर, वहाँ चाय पीकर तीन होटलों में गया- बताया गया, कमरा खाली नहीं है। होटल वाले ढंग से बात भी नहीं कर रहे थे। मुझे ऊटी की याद आयी कि कैसे बस से उतरते ही होटलों के एजेण्टों ने घेर लिया था। यहाँ, बस स्टैण्ड के पास जो पाँच-सात चाय-दूकानें थीं, वहाँ भी कोई ग्राहकों की परवाह नहीं कर रहा था, जबकि कई अन्य जगहों में ग्राहकों को बुलाया जाता है।
मैंने तुरन्त आगे बढ़ने का फैसला ले लिया। एक ब्रेड-आमलेट खाकर और एक पैक कराकर शाम पाँच पैंतीस पर मैं आगे बढ़ गया- नवगाँव की ओर। प्रायः इक्कीस किलोमीटर का सफर था- उम्मीद नहीं थी कि अन्धेरा होने से पहले पहुँच पाऊँगा। शायद पिछली बार की तरह इस बार भी नवगाँव से सात-आठ किमी बाहर ही रात बितानी पड़े! यह सोचकर ही मैंने ब्रेड-आमलेट पैक करा लिया था।
मगर हुआ उल्टा। छतरपुर शहर से बाहर निकलते ही घुटनों का दर्द गायब हो गया। सड़क अच्छी नजर आने लगी। ढलान भी थी और हवा भी विरुद्ध नहीं थी। इसी सड़क पर आते समय मैं परेशान हो गया था। अब वापसी के सफर में साइकिल चलाने में मजा आ रहा था।
माइलस्टोन तथा हाथघड़ी देखकर मैंने हिसाब लगाया- रफ्तार कोई 15-16 किमी प्रतिघण्टा थी। चढ़ाव पर भी साइकिल धीरे नहीं हो रही थी। सिर्फ एक बार मैं रुका- ट्रैक सूट का अपर पहनने के लिए; वर्ना बिना इधर-उधर देखे, अच्छी रफ्तार के साथ अन्धेरा घिरते-घिरते मैं नवगाँव के बाजार में था। बिलकुल तरोताजा! घुटनों का दर्द गायब होने के पीछे कारण शायद सरसों तेल था। आज सुबह खजुराहो में और फिर छतरपुर के बाहर मैंने घुटनों पर आयोडेक्स के स्थान पर सरसों तेल की मालिश की थी।
जो नवगाँव पिछली बार धूल भरा हाई-वे मार्केट नजर आ रहा था, वही अभी चमचमाती रोशनी के साथ एक बड़ा कस्बा, बल्कि शहर नजर आ रहा था। सुन्दर और स्वच्छ भी। यहाँ शायद यही एक लॉज है, बस अड्डे के पास। सिंगल बेड का कमरा नहीं खाली था, सो डबल बेड का कमरा मिला- 30 रु0 में। (सिंगल का रेट 25/- और डबल का 35/- बताया गया।) लॉज में सामान रखकर मुँह-हाथ धोकर बाजार में आया। बैग को बाँधने वाली डोरी कमजोर हो रही थी। नयी डोरी खरीदी। एक बड़े कोच में बैठे विदेशी पर्यटक इस छोटे-मोटे बाजार को देखकर बड़े खुश हो रहे थे। पर्यटक से याद आया, छतरपुर में मैंने एक विदेशी पर्यटक को बस की छत से अपना भारी बैग उतारते देखा था। शायद उसने सफर भी बस की छत पर ही हो!
इस लॉज में ठहरने के बाद मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ग्वालियर के पास हूँ। जबकि वापसी के सफर का यह पहला ही तथा सबसे कम दूरी वाला चरण है। मैंने यह भी अनुमान लगाया कि नवगाँव और खजुराहो के बीच में जो छतरपुर शहर है, उसकी ऊँचाई दोनों से अधिक है। इसीलिए नवगाँव से छतरपुर आने में मुझे परेशानी हुई थी और छतरपुर से खजुराहो जाने में आसानी। वापसी में इसका ठीक उल्टा हुआ। यानि लम्बी साइकिल यात्रा से पहले नक्शा बनाते समय शहरों की समुद्रतल से ऊँचाई भी नोट कर लेनी चाहिए!
खैर, सुबह जल्दी सफर की शुरुआत करके अन्धेरा होने तक 106 किमी दूर ओरछा पहुँचने का इरादा है। देखा जाय।